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लेखनी प्रतियोगिता -22-Jun-2023 धोका बुढा़पे की लाठी का


                      धोका  बुढापे की लाठी का


           दुलारी दोपहर से पार्क की एक बैन्च पर बैठी हुई  अपने बेटे की आने की प्रतीक्षा कर रही थी। पार्क में टहलने वाला हर ब्यक्ति उसकी तरफ देखलेता और सोचता कि यह बुढि़या इतनी देर से बैठी क्या कर रही है?

   सभी वहाँ आने जाने वाले उसे संनिग्ध नजरौ से देख रहे थे। जैसे जैसे समय बीत रहा था बैसे ही दुलारी के चहरे पर चिन्ता की  लकीरें बढ़ती जारही थी।  दुलारी वहाँ किसी को जानती भी नहीं थी। क्यौकि वह आज हीं गाँव से शहर आई थी।

     दुलारी पढी़ लिखी भी नहीं थी। आज के जमाने में उसके पास मोबाइल भी नहीं था जिससे वह  अपने किसी सगे सम्बन्धी से बात कर लेती।

      अब सूरज देवता भी अस्त हो चुके थे  स्ट्रीट लाइटें भी जल गयी थी। दुलारी के पास सामान के नाम का केवल एक कपडे़ का मटमेंला थैला था। दुलारी कभी बैन्च से खडी़ होकर पार्क के गेट कीतरफ देखती और फिर  बैन्च पर बैठ जाती।

       दुलारी से कुछ दूर बैठा एक बुजर्ग यह सब बहुत देर से देख रहा था।  आखिर उस बुजर्ग ने दुलारी  के पास जाकर पूछा," बहिनजी आप कुछ परेशान दिखाई देरही हो ? क्या किसी के आनै की प्रतीक्षा कररही हो। क्या कोई आने वाला है ?"

    "हाँ मेरा बेटा आने वाला है  उसको गये हुए बहुत देर होगयी है । मालूम नहीं वह क्यौ नही आया है?", दुलारी चिन्ता करते हुए  बोली।

         "बहिनजी उसका कोई  मोबाइल नम्बर है तो बताओ मैं आपकी बात करा देता हूँ ? अथवा आपको घर का पता मालूम हो तो मैं पहुँचा देता हूँ ?"  उन्होंने पूछा।

        "नहीं मोबाईल नम्बर तो मुझे नही मालूम?  और मै  इस शहर में आज पहली बार आई हूँ । इस लिए मुझे घर का  पता भी नहीं मालूम है।  हाँ जब वह यहाँ से गया था तब मुझे एक आगज देकर गया था और वह यह कहकर गया था कि कोई पूछे तब यह कागज देदे ना। इतना कहकर दुलारी ने एक कागज उन बुजर्ग की तरफ बढा़ दिया।

     जब उन बुजर्ग ने वह कागज खोलकर पढा़ तब उनको बहुत आश्चर्य हुआ क्यौकि उस कागज पर लिखा था कि यह बुढि़या जिनको मिले वह कृपया इनको बृद्धाश्रम पहुचा दे।

          अब वह उस बुढि़या को क्या जबाब देते कि इस कागज में क्या लिखा है। उन्होने तुरन्त एक रिक्शा बुलाया और वह दुलारी को लेकर बृद्धाश्रम  गये और दुलारी को समझाकर वहाँ भरती करवा दिया।

       दुलारी रात को  अपने बेटे के फोटो को लेकर पूछने लगी," नालायक ! मैने तुझे अपना दूध इस लिए पिलाकर बडा़ किया था कि तू बुढा़पे में हमारी लाठी बनेगा। मुझे ऐसा मालूम होता कि तू मुझे शहर में लाकर इस तरह मरने के लिए सड़क पर छोड़ देगा तब मै तुझे जन्म लेते ही मार देती।"

        रामलाल के शादी के दस वर्ष बाद एक बेटा हुआ था। राम लाल व उनकी पत्नी दुलारी ने उसको बहुत प्यार से पाला था। उसको पढा़कर अच्छा बडा़ अफसर बनाया था।  उनके बेटे अमन ने प्रेम विवाह किया था ।शादी के बाद अमन की पत्नी उसे शहर ही लेगयी। इसी समय रामलाल का देहान्त होगया। अमन अपने पिता के अन्तिम संस्कार पर आया ।

           वह कुछ दिन गाँव में ही रहा और उसने गाँव की जमीन व मकान बेच दिया और अपनी माँ को बोला," माँ अब आप मेरे साथ शहर चलो वहीं बहू व पोतौ के साथ रहना। यहाँ अकेली कहाँ रहोगी? पिताजी थे तब कोई  बात नहीं थी। "

    इस तरह बहाने बनाकर मीठी बातें करके धोके से उनको शहर लाकर एक पार्क में बिठाकर उनसे झूंठ बोलगया कि मै अभी आता हूँ।लेकिन वह वापिस लौटकर नहीं आया।

     दुलारी बृद्धाश्रम में  रातभर उस फोटो को छाती से लगाकर बातें करती हुई ऐसी नींद में सोगयी जिससे वह कभी नहीं जगी। जब सुबह बृद्धाश्रम वालौ ने देखा तब तक वह बहुत दूर जाचुकी थी।


आज की दैनिक प्रतियोगिता हेतु रचना।
नरेश शर्मा " पचौरी "
 

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7 Comments

Gunjan Kamal

24-Jun-2023 12:08 AM

👏👌

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Punam verma

23-Jun-2023 09:15 AM

Very nice

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Abhinav ji

23-Jun-2023 07:32 AM

Very nice

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